कुल्लू नगर में देवता रघुनाथजी की वंदना से दशहरे के उत्सव का आरंभ करते हैं. दशमी पर उत्सव की शोभा निराली होती है. दशहरा पर्व भारत में ही नहीं, बल्कि भारत के बाहर विश्व के अनेक देशों में उल्लास के साथ मनाया जाता रहा है. भारत में... ...
highlights
- कुल्लू दशहरा मेले में शिरकत करेंगे पीएम मोदी
- सदियों पुराने मेले में पहुंचते हैं लाखों लोग
- 7 दिन तक चलता है सैकड़ों साल पुराना मेला
कुल्लू/नई दिल्ली:
कुल्लू दशहरा मेरा इस बार इतिहास रचने जा रहा है. क्योंकि कुल्लू दशहरे के उत्सव में यह पहली बार है कि कोई देश का प्रधानमंत्री शिरकत कर रहा है और उसको लेकर तैयारियां शुरू कर दी गई हैं. जहां पर प्रधानमंत्री की स्टेज लगी है. वहीं पर रघुनाथ भगवान का रथ भी खड़ा है जो कि पूरी तरह से लकड़ी का बना हुआ है और उसमें मोटे मोटे रस्से बांधे हुए हैं ताकि भगवान रघुनाथ के रथ को खींच सके. देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कुल्लू दशहरे में जिस स्टेज पर विराजमान होंगे. वहां की सुरक्षा को चाकचौबंद कर दिया गया है. स्टेज के आसपास बड़े बड़े होर्डिंग्स लगाए गए है. प्रधानमंत्री के इसी स्टेज के सामने से भगवान रघुनाथ की रथ यात्रा भी निकलेगी. कुल्लू का ये दशहरा मेला बेहद खास होता है. आईए बताते हैं इस रामलीला की खासियत…
रघुनाथ जी की वंदना से शुरू होता है उत्सव
कुल्लू नगर में देवता रघुनाथजी की वंदना से दशहरे के उत्सव का आरंभ करते हैं. दशमी पर उत्सव की शोभा निराली होती है. दशहरा पर्व भारत में ही नहीं, बल्कि भारत के बाहर विश्व के अनेक देशों में उल्लास के साथ मनाया जाता रहा है. भारत में विजयादशमी का पर्व देश के कोने-कोने में मनाया जाता है. जब देश में लोग दशहरा मना चुके होते हैं तब कुल्लू का दशहरा शुरू होता है. इस दशहरे की एक और खासियत यह है कि जहां सब जगह रावण, मेघनाद और कुंभकर्ण का पुतला जलाया जाता है. कुल्लू में काम, क्रोध, मोह, लोभ और अहंकार के नाश के प्रतीक के तौर पर पांच जानवरों की बलि दी जाती है.
रामायण से सीधे नहीं जुड़ा है दशहरे का रिश्ता
कुल्लू के दशहरे का सीधा संबंध रामायण से नहीं जुड़ा है. बल्कि कहा जाता है कि इसकी कहानी एक राजा से जुड़ी है. सन् 1636 में जब जगतसिंह यहां का राजा था, तो मणिकर्ण की यात्रा के दौरान उसे ज्ञात हुआ कि एक गांव में एक ब्राह्मण के पास बहुत कीमती रत्न हैं. राजा ने उस रत्न को हासिल करने के लिए अपने सैनिकों को उस ब्राह्मण के पास भेजा. सैनिकों ने उसे यातनाएं दीं, डर के मारे उसने राजा को श्राप देकर परिवार समेत आत्महत्या कर ली. कुछ दिन बाद राजा की तबीयत खराब होने लगी. तब एक साधु ने राजा को श्रापमुक्त होने के लिए रघुनाथजी की मूर्ति लगवाने की सलाह दी. अयोध्या से लाई गई इस मूर्ति के कारण राजा धीरे-धीरे ठीक होने लगा और तभी से उसने अपना जीवन और पूरा साम्राज्य भगवान रघुनाथ को समर्पित कर दिया. तभी से यहां दशहरा पूरी धूमधाम से मनाया जाने लगा.
हिमाचल प्रदेश में दशहरा पूरे 7 दिन का त्योहार
हिमाचल प्रदेश में दशहरा एक दिन का नहीं बल्कि सात दिन का त्योहार है. यहां इस त्योहार को दशमी कहते हैं. कुल्लू का दशहरा देश में सबसे अलग पहचान रखता है. कुल्लू का दशहरा पर्व परंपरा, रीतिरिवाज और ऐतिहासिक दृष्टि से बहुत महत्व रखता है. हिमाचल प्रदेश के कुल्लू का दशहरा सबसे अलग और अनोखे अंदाज में मनाया जाता है. यहां इस त्योहार को दशमी कहते हैं तथा आश्विन महीने की दसवीं तारीख को इसकी शुरुआत होती है. जब पूरे भारत में विजयादशमी की समाप्ति होती है. उस दिन से कुल्लू की घाटी में इस उत्सव का रंग और भी अधिक बढ़ने लगता.
राज घराने के सदस्य लेते हैं भगवान का आशीर्वाद
कुल्लू के दशहरे में आश्विन महीने के पहले 15 दिनों में राजा सभी देवी-देवताओं को धालपुर घाटी में रघुनाथजी के सम्मान में यज्ञ करने के लिए न्योता देते हैं. 100 से ज्यादा देवी-देवताओं को रंगबिरंगी सजी हुई पालकियों में बैठाया जाता है. इस उत्सव के पहले दिन दशहरे की देवी, मनाली की हिडिंबा कुल्लू आती हैं. राजघराने के सब सदस्य देवी का आशीर्वाद लेने आते हैं. इस अवसर पर रथयात्रा का आयोजन होता है. रथ में रघुनाथजी तथा सीता व हिडिंबाजी की प्रतिमाओं को रखा जाता है. रथ को एक से दूसरी जगह ले जाया जाता है, जहां यह रथ 6 दिन तक ठहरता है. इस दौरान छोटे-छोटे जुलूसों का सौंदर्य देखते ही बनता है. उत्सव के 6ठें दिन सभी देवी-देवता इकट्ठे आकर मिलते हैं जिसे ‘मोहल्ला’ कहते हैं. इस दिन मोहल्ला उत्सव मनाया जाता है.
रथ यात्रा के साथ शुरू हो जाएगा मेला
अंतरराष्ट्रीय कुल्लू दशहरे के आगाज से पहले रघुनाथ मंदिर में तैयारियां शुरू कर दी गई है. रघुनाथ मंदिर में उनके आभूषणों और अन्य चीजों की साफ सफाई की जा रही है. इसी मंदिर से भगवान रघुनाथ कुल्लू दशहरे के लिए अपनी पालकी में निकलेंगे और उसके बाद इस मेले का आगाज शुरू हो जाएगा. रघुनाथ मंदिर के छडीबदार और राजवंश घराने से ताल्लुक रखने वाले महेश्वर सिंह का कहना है कि भगवान रघुनाथ के मेले में पहुंचने के साथ ही रथ यात्रा शुरू होने पर मेले का आगाज हो जाएगा. उन्होंने कहा कि अंतरराष्ट्रीय कुल्लू दशहरे के यह बड़ी उपलब्धि है किस देश के प्रधानमंत्री पहली बार शिरकत कर रहे हैं. उन्होंने कहा वह देवी-देवताओं का आशीर्वाद लेने के लिये यहां पहुंच रहे हैं.
7 दिनों तक मेले में विराजमान रहेंगे भगवान रघुनाथ
कुल्लू के ढालपुर मैदान में रघुनाथ भगवान सात दिनों तक विराजमान रहेंगे जैसे ही वह मेले में पहुंचेंगे पहले रथ यात्रा निकाली जाएगी और उसके बाद वह 7 दिनों तक इस मेले में विराजमान रहेंगे. जहां पर सात दिन विराजेंगे उनके विराजमान स्थल को अंतिम रूप दिया जा रहा है. इस मेले में 350 से ज्यादा देवी देवता शिरकत करेंगे. दूरदराज के क्षेत्रों से देवी देवताओं का पहुंचना शुरू हो गया है और जैसे ही कल भगवान रघुनाथ इस मेले में पहुंचेंगे. उनके साथ ही रथ यात्रा में यह सारे देवी देवता शामिल होंगे.
शुरू हो गई राजनीति
प्रधानमंत्री की कुल्लू दशहरे की यात्रा को भाजपा नेता राजनीति से हटकर यात्रा बता रहे हैं. भाजपा नया महेश्वर सिंह का कहना है कि पीएम सिर्फ देवताओं का आशीर्वद लेने पहुंच रहे हैं. वहीं, कांग्रेस के नेता और स्थानीय कुल्लू के विधायक सुंदर ठाकुर का कहना है कि आठ सालों में कभी पीएम कुल्लू नहीं आये. लेकिन जब आगामी महीनों में चुनाव है, तो वह कुल्लू आ रहे हैं. कांग्रेस नेता पीएम के आने की टाइमिंग को लेकर सवाल उठा रहे हैं. (कुल्लू से विशाल की रिपोर्ट)
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